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Tuesday, 27 December 2011

चुनाव में राइट टू रिजेक्ट संभव


 राइट टू रिजेक्ट संभव, राइट टू रिकॉल से अस्थिरता
 एजेंसी  नई दिल्ली
मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी का मानना है कि देश में राइट टू रिजेक्ट (चुनाव में उम्मीदवारों को खारिज करने का अधिकार) संभव है। लेकिन राइट टू रिकॉल (चुने गए प्रतिनिधि को वापस बुलाने का अधिकार)से अस्थिरता पैदा हो जाएगी।

कुरैशी ने बताया, ‘अन्ना हजारे की टीम के सदस्य इस सिलसिले में हमसे मिले थे। उन्होंने बताया था कि चुनाव में धनबल का इस्तेमाल एक बड़ा मुद्दा है। यह चुनाव आयोग सहित सबको परेशान कर रहा है।’ उन्होंने कहा, ‘अगर राइट टू रिजेक्ट से बार-बार चुनाव होते हैं, तो आयोग

इससे बचना चाहेगा। लेकिन अगर सख्त कानून न होने से आयोग अपराधियों को चुनाव में उतरने से नहीं रोक पाता तो मतदाताओं को उन्हें खारिज करने का अधिकार देने की संभावना बनती है। इसका परीक्षण करना होगा।’ चुनाव आयुक्त ने बताया कि उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में एक बटन ‘इनमें से कोई नहीं’ जोडऩे की सिफारिश की है। इस बटन का इस्तेमाल तब किया जा सकता है जब उम्मीदवारों की सूची में कोई भी पसंद न आए।

पहले मतपत्रों में यह विकल्प होता था। कुरैशी ने साथ ही जोड़ा कि ऐसा कुछ नहीं किया जाना चाहिए जिससे लोकतांत्रिक संस्थाएं कमजोर हों। संसद की सर्वोच्चता पर सवाल नहीं खड़े किए जाने चाहिए। राइट टू रिकॉल के बारे में कुरैशी ने कहा, ‘कार्यकाल पूरा होने से पहले अगर उम्मीदवारों को वापस बुलाने की परंपरा शुरू हो गई, तो देश में अस्थिरता पैदा हो जाएगी। एक तरह से हमारे पास पहले ही राइट टू रिकॉल मौजूद है।

हर पांच साल बाद आप अपने प्रतिनिधि को वापस बुला सकते हैं। लोग स्मार्ट हैं। जिस सरकार को वे पसंद नहीं करते, उसे हटा देते हैं। जो प्रतिनिधि उनकी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते, उन्हें दोबारा नहीं चुनते। अगली बार खारिज कर देते हैं।’ 

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